Institute of Banking Personal जो कि autonomous body है और IBPS के नाम से जानी जाती है । ये संस्था Societies Registration Act, 1860 और Public Trust, Bombay Public Trust Act, 1950 के तहत रेगिस्टरर्ड है । जो संस्थाएँ बैंकिंग में सिलेक्शन करती है और रिक्रूटमेंट करती है उनको सहायता देने के लिए ये ibps बनाया गया है । ibps इन संस्थाओ के लिए बहुत तरह के टेस्ट टूल और अस्सेस्मेंट और answer शीट्स बनाता है इसके अलावा ये समय समय पर एक्साम्स से जुडी हुई गतिविधियों पर भी काम करता रहता है ।
ये इंस्टिट्यूट Indian Bank Association (IBA) का 'Associate Member' है ।
Vision
अस्सेस्मेंट और सिलेक्शन के प्रोसेस को सही तरीके से विकसित और लागू करना ।
Historical Background
IBPS की यात्रा देश के आर्थिक के एक बढे कार्यक्रम से जुडी हुई है; 1969 में 14 मुख्य बैंकों का राष्ट्रीयकरण, और इसके बाद सर्वोच्च लेवल की संस्था और सभी बैंकिंग सेक्टर में पब्लिक सेक्टर के बैंक ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट संस्था का उद्गम हुआ ।
1969 में बैंको का राष्ट्रीयकरण होने के बाद, सभी बैंक पुरे राष्ट्र में अपने बैंक की ज्यादा से ज्यादा ब्रान्चेस खोलना चाहते थे ताकि लोगो को बैंकिंग की सुविधाए आसानी से दी जा सके । बैंक्स अपने ब्रान्चेस का नेटवर्क बढ़ाना चाहते थे पर ये बिना नयी भर्तियाँ किये संभव नहीं था । सभी बैंकों के लिए सही पोस्ट के लिए सही इंसान को पोस्ट के लिए सेलेक्ट करना एक बड़ा काम था । उसी समय बैंकों में सिलेक्शन के लिए ना तो कोई प्रोसेस थे और ना ही कोई रूल्स और स्टैण्डर्ड हुआ करते थे । इसके अलावा बैंकों के कुछ सीनियर लोगो के द्वारा कहा गया कि बैंक्स में सेक्शन का कोई स्टैण्डर्ड नहीं है ऐसा कोई प्रोसेस नहीं है जिस से की किसी की भी परफॉरमेंस का पता लगाया जा सके और सेलेक्ट होने वाले कैंडिडेट की करियर की ग्रोथ का भी पता नहीं चल पता था ।
जब बैंक पब्लिक सेक्टर आर्गेनाईजेशन थे, उनको सार्वजानिक जवाबदेही जरुरी हुआ करती थी । इनके लिए ये जरुरी था की वो एक ऐसे सिस्टम को अपनाए जो एलिजिबल और क्वालिफाइड अप्लिकान्ट्स के लिए खुला हो और वो इसको आसानी से अपना सकें । ऐसा सिस्टम होना चाहिए जो इमानदार और इफेक्टिव हो और वो ऐसे कैंडिडेट्स को छांट सके जो एक जॉब के लिए सही हो । पर उनके लिए बैंक की ब्रान्चेस बढ़ाना पहला मुख्य काम था इसलिए उन्होंने नौकरियों के लिए advertisement देना शुरू कर दिया । जैसा सोचा था वैसा ही हुआ और उन्होंने बहुत सार नौकरियां अच्छे कैंडिडेट्स के द्वारा भर दी । बैंक्स के पर्सनल डिपार्टमेंट इन चीजों को सँभालने के लिए पूरी सुविधायों के साथ तैयार नहीं थे । उनमे से कुछ ने NIBM के लिए अप्प्रोच किया जो कि पर्सनल बैंकिंग सिलेक्शन के लिए बनायीं गयी थी और देश के कुछ हिस्सों में लोंच की गयी थी । इस नए सिस्टम के बैंकिंग सेक्टर के द्वारा स्वाभाविक तरीके से स्वीकार किया गया । इसके कारण ज्यादा से ज्यादा बैंकों ने इस सर्विस को अपनी इच्छा से लेना पसंद किया । डिमांड ज्यादा बढ़ने के बाद एक नयी संस्था PSS Personal Selection Service को बनाया गया जो इन प्रोजेक्ट्स को हैंडल करती थी । कुछ सालों बाद 1984 में, NIBM की संस्था PSS को बदलकर IBPS कर दिया गया और डॉक्टर A S देशपांडे जो कि PSS के प्रोफेसर इंचार्ज हुआ करते थे इसके फाउंडर बन गए ।
What We do
आर्गेनाइजेशन की रिक्वेस्ट पर पर्सनल सिलेक्शन में उनकी मदद करना । इन एरियाज में सर्विसेज दी जाती है ।
1. Recruitment Projects
2. Promotion Projects
3. Admission Test and Certification Exam Projects
4. Assessment Centers and Group Dynamics Related Personality Assessments, (including group exercise and interviews)
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